विदेशी धरती पर भारतीय सैन्य अड्डों का विस्तार
पिछले साल जुलाई में चीनी सेना की टुकड़ियों की पूर्वोत्तर अफ्रीका के देश जिबूती में बने नए सैनिक अड्डे में तैनाती हो गई। जिबूती के सैनिक अड्डे के लेकर भारत तो चिंतित था ही, अमेरिका और जापान की चिंताएं भी बढ़ीं। चीन इसे लॉजिस्टिक फैसिलिटी का नाम दे रहा है, पर उसके साथ 700 सैनिकों की यह टुकड़ी इस बात को समझने के लिए काफी है कि उसका इरादा क्या है। पिछले कुछ साल में हिंद महासागर क्षेत्र में तेज राजनीतिक गतिविधियाँ चल रहीं हैं। हालांकि पिछले दिनों भारत की आपत्तियों को देखते हुए श्रीलंका सरकार ने फैसला किया कि चीनी नौसेना अब हम्बनटोटा बंदरगाह का इस्तेमाल नहीं कर सकेगी, पर भारत को न केवल हिन्द महासागर में बल्कि आसपास के उन इलाकों में अपनी सुरक्षा के तंत्र को मजबूत करना होगा, जहाँ से उसे खतरा हो सकता है।
अरब सागर के छोटे से देश मालदीव से जो खबरें मिल रही हैं, वे भारतीय नीति-निर्धारकों के लिए खतरे का संकेत हैं। अंदेशा इस बात का है कि वहाँ की सेना किसी तरह सत्ता पर काबिज न हो जाए। यह देश चीन और पाकिस्तान के प्रभाव में पूरी तरह आ चुका है। उधर पाकिस्तान में चुनाव के बाद जो राजनीतिक दिशा है, वह भारत के लिए खतरे का संकेत लेकर आ रही है।

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अब्दुल्ला यामीन और चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग |
गिलगित-बल्तिस्तान में चीनी सैनिक तैनात हैं। पाकिस्तान-ईरान सीमा पर ग्वादर बंदरगाह तैयार है। चीन ग्वादर से चीन के शेनजियांग प्रांत के काशगर तक चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर बना रहा है। ग्वादर का इस्तेमाल सैनिक अड्डे के रूप में होगा। खबर यह भी है कि पाकिस्तान में चीन एक और सैनिक अड्डा बनाना चाहता है। वहीं, भारत ने भी पिछले कुछ वर्षों के दौरान अपने हितों को देखते हुए दूसरे देशों में अपने लिए सैनिक सुविधाएं बनाने का प्रयास किया है, उन पर नजर डालना बेहतर होगा।
सेशेल्स में फौजी सुविधाएं
पिछले कुछ समय से खबरें थीं कि भारत ने हिन्द महासागर के छोटे से देश सेशेल्स में फौजी सुविधाएं हासिल की हैं। बाद में खबरें आईं कि वहाँ की संसद ने इस व्यवस्था को स्वीकार करने से इनकार कर दिया। जून के महीने में वहाँ के राष्ट्रपति डैनी फोर भारत की यात्रा पर आए। हालांकि उस यात्रा के दौरान रक्षा सम्बंधी किसी समझौते की बात नहीं हुई, पर कुछ बातें स्पष्ट जरूर हुईं। राष्ट्रपति फोर की प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ हुई बातचीत के दौरान एजम्पशन द्वीप पर सैन्य सुविधा के साझा विकास पर सहमति बनी।
इसके पहले सेशेल्स के राष्ट्रपति कहते रहे हैं कि यह द्वीप भारत को सौंपने का अनुमोदन प्रस्ताव संसद में नहीं रखा जाएगा। फिर भी लगता यह है कि किसी न किसी रूप में भारत वहाँ सुविधाएं प्राप्त कर लेगा। इस यात्रा के दौरान विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने समुद्र पर गश्त लगाने वाला एक डोर्नियर-228 सेशेल्स को सौंपा। यह विमान सेशेल्स के कोस्ट गार्ड में शामिल हुआ है। भारत ने इस तरह का यह दूसरा टोही विमान सेशेल्स को भेंट में दिया है। डोर्नियर-228 विमान में 360 डिग्री का टोही रेडार लगा होता है। इसमें फॉरवर्ड लुकिंग इन्फ्रारेड सिस्टम, उपग्रह संचार, ट्रैफिक कोलाइजन और अवॉयडेंस सिस्टम, एनहांस्ड ग्राउंड प्रोक्सिमिटी वॉर्निग सिस्टम आदि लगाए ऐसा पहला विमान सेशेल्स को 31 जनवरी, 2013 को सौंपा गया था। इस विमान के जरिए सेशेल्स अपने समुद्री इलाके की बेहतर चौकसी कर सकेगा। इस चौकसी का परोक्ष लाभ भारत को मिलेगा। यह खबर इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि हाल ही में मालदीव ने भारत के चौकसी हेलिकॉप्टरों को वापस कर दिया है।
इंडोनेशिया और वियतनाम
इससे पहले मई के महीने में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी दक्षिण पूर्व एशिया के देशों के दौरे पर गए थे। इस दौरे में उनकी इंडोनेशिया यात्रा महत्वपूर्ण थी, जिसमें भारत और इंडोनेशिया ने अपने रक्षा सहयोग समझौते का नवीकरण किया। इसके अंतर्गत इंडोनेशिया के साबांग बंदरगाह को विकसित करने के लिए भारत वहां निवेश करने जा रहा है।
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प्रधानमंत्री मोदी सेशेल्स के राष्ट्रपति डैनी रोलेन फाउर को डॉर्नियर विमान भेंट करते हुए |
दक्षिण पूर्व एशिया में भारत ने अपनी नौसेना के लिए यह महत्वपूर्ण सुविधा हासिल की है। साबांग बंदरगाह को विकसित करने का समझौता करने के दो महीने के भीतर ही भारतीय नौसेना का युद्धपोत आईएनएस सुमित्रा जुलाई में वहां पहुंचा। इस तरह मलक्का जलडमरूमध्य के इलाके में भारत ने अपना युद्धपोत भेजकर इसके नौसैनिक इस्तेमाल का संकेत दे दिया है। मलक्का जलडमरूमध्य हिन्द औ? प्रशांत महासागरों के बीच का द्वार है। यहां पर भारत ने अपनी नौसेना के लिए ठहरने और ईंधन आदि लेने की सुविधा हासिल कर ली है।
मई के महीने में भारतीय नौसेना के तीन पोतों ने वियतनाम के थ्येन सा बंदरगाह, दानांग में युद्धाभ्यास किया। यह परिघटना भी महत्वपूर्ण थी। वियतनाम में भारत समुद्र में तेल की खोज करने में भी मदद कर रहा है। इसके अलावा, भारत ने कुछ महत्त्वपूर्ण हथियारों की आपूर्ति भी वियतनाम को की है। दक्षिण पूर्व एशिया में भारत के मित्र देशों में वियतनाम का नाम सबसे ऊपर है, जहाँ भारतीय नौसेना के लिए भी सुविधाएं उपलब्ध हैं।
देर से जागा भारत
लेकिन, हिन्द महासागर में चीन के बरक्स भारत ने गतिविधियाँ बढ़ाने में देरी की है। पर अब भारत तेजी से दूरी कम कर रहा है। नवीनतम उदाहरण है मिलन-2018 युद्धाभ्यास, जिसमें 38 देशों ने हिस्सा लिया। भारतीय नौसेना ने हिन्द महासागर पर पूर्ण नियंत्रण बनाने के लिए सन 2020 का लक्ष्य रखा है। मिलन-2018 का एक उद्देश्य भाग लेने वाले देशों, खासतौर से दक्षिण पूर्व एशिया के देशों को, जिनका चीन के साथ सागर सीमा को लेकर दीर्घ-कालीन विवाद चल रहा है, आश्वस्त करना था कि भारत उनके साथ खड़ा है।

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ओमान का दुक्म बंदरगाह |
भारत ने हिन्द महासागर के तटवर्ती देशों के साथ रिश्ते बेहतर बनाने की दिशा में प्रयास बढ़ाए हैं। पिछले दिनों राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने मॉरिशस और मैडागास्कर का दौरा किया। इस दौरान भारत ने मॉरिशस को 10 करोड़ डॉलर के रक्षा उपकरणों की खरीद के लिए ऋण भी स्वीकृत किया और कुछ उपकरण देने की घोषणा भी की। मॉरिशस के अगालेगा द्वीप का विकास भारत की मदद से किया जा रहा है।
मैडागास्कर में भी भारत रेडार स्टेशन स्थापित करने जा रहा है। मॉरिशस के साथ रक्षा समझौता भी होने वाला है। भारत ने इस इलाके के लिए 'सागर'(सिक्योरिटी एंड ग्रोथ फॉर ऑल इन द रीजन) नाम से एक महत्वाकांक्षी कार्यक्रम भी शुरू किया है। पिछली 12-13 फरवरी को विदेश राज्यमंत्री वीके सिंह मोजाम्बीक से होकर आए हैं। वहाँ भी भारत को लॉजिस्टिक सुविधाओं की दरकार है। भारत वहाँ भी इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास में मदद कर रहा है।
भारत ने हाल में अमेरिका और फ्रांस के साथ लॉजिस्टिक्स सपोर्ट समझौते किए हैं। इससे भारतीय नौसेना को इस क्षेत्र में अमेरिकी और फ्रांसीसी नौसैनिक अड्डों के साथ जुड़ने में मदद मिलेगी। यानी कि अमेरिका के डियागो गार्सिया और फ्रांस के जिबूती के बेस के साथ भी भारत का सम्पर्क रहेगा। भारत और जापान मिलकर रेडार स्टेशनों और टोह लाने वाले उपकरणों की एक शृंखला विकसित करने जा रहे हैं। यह शृंखला एक तरफ दक्षिण चीन सागर में पहले से मौजूद अमेरिका-जापान लाइन से और दूसरी तरफ हिन्द महासागर अमेरिकी लाइन से मिलेगी। भारत की कोशिश है कि हिन्द महासागर में ऑस्ट्रेलिया के कोकोस और क्रिसमस द्वीपों में भी सुविधाएं मिल जाएं।
ओमान में सैनिक सुविधा
इस साल 11 और 12 मार्च को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ओमान के दौरे पर गए। इस दौरे में दोनों देशों के बीच आठ अहम समझौते हुए। इन्हीं आठ में से एक समझौता ओमान में सैनिक सुविधाएं हासिल करने से जुड़ा है। ओमान ने अपने अल दुक्म बंदरगाह का प्रयोग करने की इजाजत भारत को दे दी है। पाकिस्तान से लेकर मध्य एशिया तक चीन के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए यह अड्डा बेहद उपयोगी साबित होगा।
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प्रधानमंत्री मोदी इंडोनेशिया के राष्ट्रपति जोको विदोदो के साथ |
दुक्म की अहमियत को भारत ने देर से समझा है। इसके जरिए भारत चीन को ओमान की खाड़ी के मुहाने पर रोकने में समर्थ हो जाएगा। ग्वादर पर कभी ओमानी सुल्तान का हक था और उन्होंने 1950 के दशक में भारत को इससे जुड़ने की पेशकश की थी। उस समय भारत ने उस पेशकश को यह कहकर नामंजूर कर दिया था कि वह इसे पाकिस्तान से नहीं बचा पाएगा।
दुक्म पोर्ट के सैनिक और लॉजिस्टिक सपोर्ट के इस्तेमाल से नौसेना का बल काफी बढ़ जाएगा। भारत अब ओमान के इस बंदरगाह तक अपने जहाज भेज सकेगा। साफ है कि अगर चीन ने कभी पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट का इस्तेमाल सैनिक कार्यों के लिए किया तो भारत के पास उसका जवाब होगा।
अफ्रीकी देशों में 18 नए मिशन
केंद्रीय कैबिनेट ने हाल में 2021 तक अफ्रीका में 18 नए भारतीय मिशन खोलने की मंजूरी दे दी है। ये देश हैं केप वर्डे, चाड, बुर्कीना फासो, केमरून, कांगो गणराज्य, जिबूती, इक्वेटोरियल गिनी, इरीट्रिया, गिनी बिसाऊ, गिनी, लाइबेरिया, मॉरितानिया, रवांडा, साओ टोम और प्रिंसिपे, सोमालिया, सिएरा लियोन, स्वाजीलैंड और टोगो। इस प्रकार अफ्रीका में भारतीय निवासी मिशनों की संख्या 29 से बढ़कर 47 हो जाएगी।
इधर खबर आई है कि बहरीन स्थित अमेरिकी नौसेना की सेंट्रल कमांड में भारत का एक सैनिक अटैची भी शामिल होगा। यह नौसैनिक कमान इस इलाके में पाकिस्तान और अफगानिस्तान तक कार्रवाई करती है। इसके अधीन लाल सागर, ओमान की खाड़ी, फारस की खाड़ी और अरब सागर आता है। इस कमान में भारतीय नौसैनिक अटैची की जिम्मेदारी होगी कि वह दोनों नौसेनाओं का सम्पर्क बनाकर रखे। यह पहला मौका है, जब भारत और अमेरिका ने पश्चिम एशिया के इलाके में सहयोग शुरू किया है। इसके अलावा, निजी क्षेत्र की कम्पनियों के साथ काम करने वाली अमेरिकी डिफेंस इनोवेशन यूनिट एक्सपेरिमेंटल में भी एक भारतीय सैनिक प्रतिनिधि शामिल होगा। भारत और अमेरिका हिन्द महासागर क्षेत्र में तीनों सेनाओं के अभ्यासों का विस्तार भी करने वाले हैं। मालाबार एक्सरसाइज में ऑस्ट्रेलिया को शामिल करने का काम भी चल रहा है।
ताजिकिस्तान में एयरबेस
मध्य एशिया के ताजिकिस्तान में भारत को दो एयरबेस की सुविधाएं हासिल हैं। एक आयनी और दूसरा फारखोर में। फारखोर एयरबेस का संचालन भारत ने मई 2002 से शुरू किया था। भारत से बाहर यह पहला एयरबेस था, जहाँ से भारतीय वायुसेना का संचालन होता है। यहां से भारत पाकिस्तान और चीन की हरकतों पर नजर रखता है। ताजिकिस्तान की सीमा चीन, अफगानिस्तान, पीओके (पाक अधिकृत कश्मीर) से जुड़ी है। सियाचिन भी यहां से करीब है। सियाचिन पर नजर रखने के लिए यह सबसे उपयुक्त स्थान है। भारत ने यहां छोटा सैनिक अस्पताल भी बनाया है, जिसे मैत्री हॉस्पिटल भी कहा जाता है। यहां तालिबान से लड़ाई में घायल अफगान नॉर्दर्न एलायंस के जवानों का इलाज किया जाता था।
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ताजिकिस्तान स्थित फारखोर एयरबेस |
तब से इसे भारत के एयर बेस के रूप में पहचाना जाने लगा। भारत के लिए ताजिकिस्तान मध्य एशिया का गेटवे भी है। आयनी एयर बेस ताजिकिस्तान की राजधानी दुशानबे से सिर्फ 10 किमी दूर है। इसे गिसार एयर बेस के नाम से भी जाना जाता है। भारत ने 2002 से 2010 तक इस एयर बेस के पुनर्निर्माण और आधुनिकीकरण के लिए करीब 7 करोड़ डॉलर खर्च किए थे। इसका रनवे भी बढ़ाया गया है।
पड़ोसी देशों से रक्षा-सम्बंध
पाकिस्तान को छोड़ दें तो इस वक्त भारत के शेष सभी पड़ोसी देशों के साथ रिश्ते अच्छे हैं। उनमें रक्षा-सम्बंध भी शामिल हैं। भारत और भूटान ने सन 2007 में एक नई मित्रता संधि पर हस्ताक्षर किए जिसने 1949 की संधि का स्थान लिया। नई संधि पुरानी संधि का ही परिवर्तित रूप है। आजादी के तुरंत बाद दोनों देशों के बीच 8 अगस्त 1949 में दार्जीलिंग में संधि हुई थी। इसके मुताबिक रक्षा और विदेश मामलों में भूटान भारत पर आश्रित है।
हालांकि औपचारिक रूप से नई संधि में रक्षा और विदेश नीति के बारे में प्रावधानों का ब्योरा नहीं दिया गया पर, दोनों देशों ने अपनी भूमि का इस्तेमाल एक दूसरे के राष्ट्रीय हितों के विरूद्ध नहीं होने देने की वचनबद्धता दोहराई है। भारत और नेपाल के बीच सन 1950 की मैत्री संधि है, जिसमें आपसी सुरक्षा की व्यवस्थाएं हैं। भारतीय सेना में गोरखा सैनिकों की बड़ी हिस्सेदारी है और नेपाल की अर्थव्यवस्था में इनको मिलने वाली पेंशन की बड़ी भूमिका है। इनके लिए नेपाल में भारत के रक्षा विभाग के विशेष दफ्तर स्थापित हैं।
पिछले डेढ़ साल में प्रधानमंत्री शेख हसीना की दो बार भारत यात्राओं के दौरान दोनों देशों के बीच रक्षा सहयोग के महत्वपूर्ण समझौतों पर दस्तखत हुए हैं। मई में हुए एक समझौते के तहत भारत युद्धपोत डिजाइन और निर्माण के क्षेत्र में बांग्लादेश की मदद कर रहा है। दोनों देशों की नौसेनाओं ने समुद्री गश्त को लेकर भी समझौता किया है,सबसे महत्वपूर्ण है बांग्लादेश के नाभिकीय ऊर्जा कार्यक्रम में सहयोग का समझौता। लगभग ऐसे ही समझौते म्यांमार के साथ भी हुए हैं। इन समझौतों में सीमा पर होने वाली आतंकी गतिविधियों के खिलाफ संयुक्त कार्रवाई की व्यवस्था भी है। '
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प्रमोद जोशी |